Wednesday, May 12, 2010

माँ


कब्र की आगोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कही जाके थोडा सुकून पाती है माँ
फिक्र में बच्चो की कुछ ऐसे ही घुल जाती है माँ
नौ जवा होते हुए बूढी नजर आती है माँ
रूह के रिश्तो की ये गहराइया तो देखिये
चोट लगती है हमे और चिल्लाती है माँ
कब जरुरत हो बच्चो को मेरी इतना सोचकर
जागती रहती है आँखें और सो जाती है माँ
घर से जब परदेश जाता है कोई माँ का लाडला
हाथ में लेकर गीता / कुरान दर पे आ जाती है माँ
जब परेशानी में घिर जाते है हम परदेश में
आंशुओ को पोछने ख्वाबो में आ जाती है माँ
चाहे हम खुशिओ में माँ को भूल जाये दोस्तों
जब मुसीबत सर पे आये तो याद आ जाती है माँ
लौटकर सफ़र से जब भी घर आते है हम
डालकर बाहें गले में सर को सहलाती है माँ
शुक्रिया कर ही नहीं सकते कभी उसका अदा
मरते -मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ
जब तक बच्चा ना आ जाए घर पे यारो
अपनी दोनों पुतलिया चौखट पे रख जाती है माँ
प्यार कहते है किसे और ममता क्या चीज़ है
ये तो उन बच्चो से पूछो जिनकी मर जाती है माँ
कब्र की आगोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कही जाके थोडा सुकून पाती है माँ

1 comment:

  1. जज्बातों को शब्द देने के लिए साधुवाद !!

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